तुर्कों का आक्रमण Turko ka akraman indian History

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तुर्कों का आक्रमण

अरबो के आक्रमण और उसकी प्रतिक्रयास्वरूप भारत में कई प्रभावशाली साम्राज्यों का उदय हुआ। हालाँकि 300 बर्षो तक भारत सहित सिंहल द्वीप, जावा और सुमात्रा द्वीप में शासन करने वाले सम्राट अपने आपसी संघर्ष, देश में केंद्रीकृत शक्ति का अभाव, सत्तालोभ के लिए तुर्कों की सहायता आदि के कारण तुर्क-मुसलमानों के आक्रमण को विफल करने में विफल रहे। अर्थात कहा जा सकता है कि अरबों का प्रारम्भ किया हुआ कार्य तुर्कों ने पूरा किया। भारत में मुस्लिम शासन की स्थापना का श्रेय तुर्कों को जाता है। इस अध्याय के अंतर्गत हम भारत पर तुर्क आक्रमण, तुर्क आक्रमण के बाद भारत की राजनैतिक स्थिति  बदलाव, तुर्कों की विजय का प्रभाव आदि सन्दर्भों का विस्तार अध्ययन करेंगे।

तुर्कों का आक्रमण Turko ka akraman indian History

तुर्क मुसलमान

सुबुक्तगीन

सुबुक्तगीन प्रारम्भ में अलप्तगीन का गुलाम था। गुलाम की प्रतिभा से प्रभावित होकर उसने उसे अपना दामाद बना लिया और "अमीर-उल-उमरा" की उपाधि से सम्मानित किया। 
सुबुक्तगीन एक योग्य तथा महत्वाकांक्षी शासक सिद्ध हुआ। उसने अपनी शक्ति को बढ़ाया और साथ ही राज्य का विस्तार भी शुरू कर दिया। सुबुक्तगीन ही प्रथम तुर्की था, जिसने हिन्दुशाही शासक जयपाल को पराजित किया था। सुबुक्तगीन के देहांत के बाद उसका पुत्र एवं उत्तराधिकारी महमूद गजनवी गजनी की गद्द्दी पर बैठा। 
भारत पर आक्रमण करने वाला प्रथम तुर्क ( मुस्लिम ) शासक सुबुक्तगीन ही था। 

महमूद ग़ज़नवी ( 998-1030 ई. )

सुबुक्तगीन की मृत्यु के बाद उसका ज्येष्ठ पुत्र महमूद गजनवी 998 ई. में शासक बना। राज्यारोहण के समय उसकी आयु मात्र 27 बर्ष की थी। महमूद ग़ज़नवी ने 1000 ई. से 1027 ई. तक भारत में कुल 17 बार आक्रमण किये, उसके आक्रमणों का मुख्या उद्येश्य भारत की अथाह संपत्ति को लूटना था। 
ग़ज़नवी ने 1000 ई. में भारत पर आक्रमण शुरू किये तथा सीमावर्ती क्षेत्रों के दुर्गों/किलों को जीता। तत्पश्चात 1001 ई. में हिन्दुशाही शासक जयपाल को पेशावर के निकट पराजित किया। महमूद ने धन लेकर जयपाल को छोड़ दिया परन्तु अपमानित महसूस करते हुए जयपाल ने अपने पुत्र आनंदपाल को राज्य सौंपकर आत्महत्या कर ली।  महमूद ग़ज़नवी का महत्वपूर्ण आक्रमण मुल्तान पर हुआ तथा रास्ते में भेरा के निकट जयपाल के पुत्र आनंदपाल को पराजित किया और 1006 ई. में मुल्तान पर विजय प्राप्त की। 
1008 ई.  में महमूद ने पुनः मुल्तान पर आक्रमण किया और उसे अपने राज्य में मिला लिया। 
➬ 1014 ई. में महमूद ग़ज़नवी ने थानेश्वर पर आक्रमण किया। दिल्ली के राजा ने पड़ौसी राजाओं के साथ मिलकर महमूद को रोकने का प्रयत्न किया, परन्तु विफल रहे। 

तुर्कों का आक्रमण Turko ka akraman indian History

➬ 1018 ई. में महमूद ने कन्नौज क्षेत्र पर आक्रमण किया। वहां गुर्जर-प्रतिहार शासक के प्रतिनिधि राज्यपाल का शासन था। मार्ग में बुलंदशहर के राजा हरदत्त ने आत्मसमर्पण किया तथा मथुरा का शासक कुलचंद युद्धभूमि में मारा गया। महमूद ने मथुरा तथा निकटवर्ती क्षेत्रों के लगभग 1000 मंदिरों में लूटपाट करके नष्ट कर दिया। 
➬ 1019 ई. में महमूद ने हिन्दुशाही राजा त्रिलोचनपाल को परास्त किया और 1020-1021 में महमूद ने बुंदेलखंड की सीमा पर विद्याधर की सेना के एक भाग को पराजित किया और विद्याधर साहस छोड़कर वहां से भाग गया। 
➬ 1021-22 में महमूद ने ग्वालियर के राजा कीर्तिराज को संधि के लिए विवश किया एवं कालिंजर के किले पर घेरा डाल दिया लेकिन जीत नहीं पाया। तत्पश्चात विद्याधर के साथ महमूद ग़ज़नवी ने संधि कर ली और विद्याधर को 15 किले उपहारस्वरूप दिए। 
➬ भारत में महमूद ग़ज़नवी का सर्वाधिक महत्वपूर्ण अभियान ( 1025-26 ई. ) सोमनाथ का मंदिर ( गुजरात ) था। उस समय वहां का शासक भीम प्रथम था। इस युद्ध में 50,000 से अधिक लोग मारे गए। महमूद इस मंदिर को पूर्णतः नष्ट करके इसकी अकूत संपत्ति को लेकर सिंध के रेगिस्तान से वापस लौट गया। 
➬ महमूद ने अंतिम आक्रमण 1027 ई. में जाटों पर किया और उन्हें पराजित किया क्योँकि सोमनाथ को लूटकर वापस जाते समय महमूद ग़ज़नवी को पश्चिमोत्तर में सिंध के जाटों ने क्षति पहुंचाई थी। 
➬ 1030 ई. में महमूद ग़ज़नवी की मृत्यु हो गई। 

महमूद ग़ज़नवी का मूल्यांकन -

लेनपूल के अनुसार "महमूद एक महान सेनानी, प्रसंसनीय, साहसी, अविजयी शासक, मानसिक और शारीरिक शक्ति रखने वाला शासक था।"
 यह भी सत्य है कि महमूद नए शासन अथवा सिद्धांतों का निर्माण करने वाला और दूरदर्शी राजनीतिज्ञ नहीं था।
 हिन्दू धर्म की मूर्तियों को तोड़ने के कारण उसे 'बुतशिकन' या 'मूर्तिभंजक' कहा गया। 
 महमूद विद्वानों और कलाकारों का संरक्षक था। महान भवन-निर्माताओं, कवियों और कलाकारों से उसका दरबार भरा रहता था। 
 महमूद ग़ज़नवी द्वारा जारी चाँदी के सिक्कों के दोनों तरफ दो अलग-अलग भाषाओँ में मुद्रालेख अंकित थे, यह मुद्रालेख एक तरफ 'अरबी' तथा दूसरी तरफ 'संस्कृत' भाषा में थे। 

तुर्कों का आक्रमण Turko ka akraman indian History

 नोट : महमूद के दरबार में अलबरूनी, फिरदौसी, उतबी एवं फ़र्रुख़ी आदि विद्वान थे। इसी के दरबार में फिरदौसी ने 'शाहनामा' की रचना की। अलबरूनी महमूद ग़ज़नवी के आक्रमण के समय भारत आया, जिसकी प्रसिद्ध पुस्तक 'किताब-उल-हिन्द' तात्कालिक इतिहास जानने का सबसे अच्छा स्त्रोत है। 

महमूद ग़ज़नवी के आक्रमण का भारत पर प्रभाव -

➬ महमूद ग़ज़नवी के आक्रमण के परिणामस्वरुप उत्तर भारत राजनैतिक दृष्टि से असुरक्षित हो गया। 
➬ महमूद के आक्रमणों का सीधा प्रभाव तो भारत की अर्थव्यवस्था पर पड़ा जो पूरी तरह जर्जर हो चुकी थी। महमूद अधिकांश संपत्ति लूटकर ले गया था। 
➬ महमूद के आक्रमणों का अंतिम और महत्वपूर्ण प्रभाव यह हुआ कि भारत में अनेक हिन्दू मुसलमान बन गए और यहाँ इस्लाम धर्म का विस्तार हुआ तथा भारत में मुसलमानों की जड़ें मजबूत हुईं। 

शिहाबुद्दीन उर्फ़ मुईजुद्दीन मुहम्मद गौरी

भारत में मुसलमानों के साम्राज्य का वास्तविक संस्थापक मुईजुद्दीन मुहम्मद-बिन-साम था, जिसे मुहम्मद गौरी अथवा "गौर वंश का मुहम्मद" भी कहा जाता है। स्मरणीय है कि भारत पर आक्रमण करने वाला पहला मुसलमान मुहम्मद बिन कासिम था, परन्तु शीघ्र मृत्यु हो जाने के कारण वह भारत में मुस्लिम साम्राज्य स्थापित करने में असफल रहा। उसके आक्रमण का एकमात्र स्थाई प्रभाव 'सिंध की विजय' थी। मुहम्मद बिन कासिम के बाद महमूद ग़ज़नवी ने भारत पर कई आक्रमण किये, लेकिन उसने भी अपने आप को मात्र लूटपाट तक ही सीमित रखा। वस्तुतः भारत में मुसलमानों के साम्राज्य की दृढ नीव रखने का श्रेय मुहम्मद गौरी को ही जाता है। सर्वप्रथम 12 वीं शताब्दी के मध्य में गौरी वंश ( गौर वंश ) का उदय हुआ। गौर, महमूद ग़ज़नवी के अधीन एक छोटा सा पहाड़ी राज्य था। 1173 ई. में मुहम्मद गौरी यहाँ का शासक बना। 
साम्राज्य स्थापना के उद्द्येश्य से 1175 से 1205 ई. के मध्य गौरी ने कई बार भारत पर आक्रमण किये -

मुहम्मद गौरी के आक्रमण -

 मुहम्मद गौरी ने 1175 ई. में भारत पर आक्रमण करने की शुरुआत की और मुल्तान पर आक्रमण किया। मुल्तान के मुसलमानों को परास्त कर उसने वहां अधिकार कर लिया। 
 मुल्तान से आगे बढ़ते हुए 1178 ई. में उसने पाटन ( गुजरात ) पर चढ़ाई की, परन्तु गुजरात के शासक भाम द्वितीय द्वारा उसे पराजित होना पड़ा। यह भारत में मुहम्मद गौरी की प्रथम पराजय थी। 
 1179 ई. में उसने पेशावर पर अपना नियंत्रण स्थापित किया। दो बर्ष बाद लाहौर ( पंजाब ) पर आक्रमण किया। खुसरव मलिक ने बहुमूल्य भेंट देकर अपनी रक्षा की। 1185 ई. में मुहम्मद गौरी ने सियालकोट को जीता और बापस चला गया। 

तुर्कों का आक्रमण Turko ka akraman indian History

 1186 ई. में उसने पुनः लाहौर को जीतकर वहां के शासक खुसरव को बंदी बना लिया। 
 1191 ई. के तराइन के प्रथम युद्ध में गौरी दिल्ली के शासक पृथ्वीराज चौहान से पराजित हो गया। मुहम्मद गौरी की भारत में यह दूसरी पराजय थी। 
 1192 ई. में मुहम्मद गौरी पुनः पूरी तैयारी के साथ आया और तराइन के द्वितीय युद्ध में पृथ्वीराज चौहान को पराजित किया इसी विजय के उपरांत दिल्ली में गौर साम्राज्य की स्थापना हुई। 
 1194 ई. में गौरी ने चंदावर की लड़ाई में कन्नौज के शासक जयचंद को हराया। इस विजय के पश्चात तुर्कों का नियंत्रण पूर्वी उत्तरप्रदेश में बनारस तक स्थापित हो गया। 
 गौरी का अंतिम अभियान 1205 ई. में पंजाब के खोख्कर जातियों के विरुद्ध था। 
 1206 ई. में मुहम्मद गौरी भारत से वापस जाते हुए सिंध नदी के पास दमयक नामक स्थान पर कुछ लड़ाकू जातियों के हमले में मारा गया। 
 गौरी की मृत्यु के बाद भारत में तुर्की साम्राज्य का शासन उसके तीन गुलामों ( यलदोज, कुबाचा और कुतुबुद्दीन ऐबक ) ने संभाला जिसमें कुतुबुद्दीन ऐबक ने दिल्ली में ममलूक वंश की नीव रखी। 

मुहम्मद गौरी का मूल्यांकन -

मुहम्मद गौरी अपने पूर्ववर्ती ग़ज़नवी की भांति एक महान सेनापति नहीं था। ऐसा इसलिए, क्योंकि भारतीय राजाओं से उसे कई बार पराजय झेलनी पड़ी। हालांकि मुहम्मद गौरी, राजनैतिक सुधारों में महमूद ग़ज़नवी से अधिक योग्य था। 
➬ महमूद ग़ज़नवी विजय और धन संग्रह में लगा रहा, लेकिन मुहम्मद गौरी एक ऐसा साम्राज्य स्थापित करने में सफल रहा, जो शताब्दियों तक स्थाई रहा। यह राज्य दूसरे शासकों के अधीन संगठित हो गया और मुहम्मद गौरी के समय से लेकर यूरोपीय कंपनियों के आगमन तक दिल्ली के सिंहासन पर सदैव मुसलमान शासक बैठे। 
➬ मुहम्मद गौरी के सिक्कों पर एक ओर 'कलमा' खुदा रहता था तथा दूसरी ओर देवी 'लक्ष्मी' की आकृति रहती थी। 

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